मेरी कुछ और कविताएं

असीमा भट्ट

1.
दुर्दिन में भी मासूम बच्चे खिलखिलाकर हंस रहे हैं
क्यारियों में अब भी खिल रहे हैं फूल
तितलियां अब भी नृत्य कर रही हैं
प्यार में धोखा खाई हुई प्रेमिकाएं
अब भी प्रेम कर रही हैं
चूम रही हैं अपने प्रेमी का माथा
कैसे कहें
वक्त बुरा है...

2.

मेरा मन
शून्य है
निराकार
जहां बजती है
तुम्हारी याद की घंटियां
रह रह कर
किसी प्राचीन, सुदूर मंदिरो की घंटियों की तरह
ब्रह्मांड रचने लगता है
इक नया संसार
इक नवजात शिशु किलकारियां लेता हुआ आ रहा है
मां के गर्भ से बाहर
रचने इस विश्व में
प्रेम का इक नया इतिहास...

3.
धीरे धीरे बोलो
हो सके तो मौन ही रहो
अभी शांत हुआ है
तलाब का ठहरा हुआ पानी...

4.
तुम एक
भटके हुए राही हो
और मैं इक राह
जिस पर से कोई गुजरा ही नहीं...

14 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय 22 सितंबर 2011 को 7:46 pm बजे  

चारों ही मन की गहराई से उमड़कर आती हुयी।

vandana gupta 22 सितंबर 2011 को 11:56 pm बजे  

सभी लाजवाब दिल को छूती हुई।

shikha varshney 23 सितंबर 2011 को 1:40 am बजे  

शुरू की २ में सकारात्मक भाव बहुत पसंद आया.क्षणिकाएं सारी ही बहुत सुन्दर हैं.

अनामिका की सदायें ...... 23 सितंबर 2011 को 8:02 am बजे  

sunder kshanikaayen.

Anju (Anu) Chaudhary 23 सितंबर 2011 को 9:32 am बजे  

बस एक ही शब्द ...बेहतरीन

संगीता स्वरुप ( गीत ) 23 सितंबर 2011 को 10:39 am बजे  

खूबसूरत क्षणिकाएँ ...

अजय कुमार 24 सितंबर 2011 को 10:27 pm बजे  

अच्छी और सुंदर प्रस्तुति

रचना दीक्षित 25 सितंबर 2011 को 12:26 am बजे  

धीरे धीरे बोलो
हो सके तो मौन ही रहो
अभी शांत हुआ है
तलाब का ठहरा हुआ पानी...

बहुत खूबसूरत क्षणिकाएँ. सारी की सारी प्रस्तुतियाँ बहुत भावपूर्ण है. बधाई.

देवेन्द्र पाण्डेय 25 सितंबर 2011 को 7:56 am बजे  

चारों क्षणिकाएँ लाज़वाब हैं। पढ़कर खुशी हुई।

Rohit Singh 25 सितंबर 2011 को 1:42 pm बजे  

कविताएं अच्छी हैं....सही में कैसे कहें की बुरा दिन है.....

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 1 जनवरी 2012 को 3:50 am बजे  

आप तथा आपके परिवार के लिए नववर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएं
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 02-01-2012 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

Naveen Mani Tripathi 2 जनवरी 2012 को 7:49 am बजे  

VAH KYA KHOOB LIKA HAI ...BAHUT BAHUT ABHAR

saurabh bhatt 20 जनवरी 2012 को 7:42 am बजे  

भावों का सागर उमड पडा आपकी ये कवितायें पढकर..काबिल-ए-कद्र रचनायें हैं सभी.बधाई स्वीकार करें

सौरभ भट्ट

manu 8 मई 2013 को 1:34 am बजे  

तितलियां अब भी नृत्य कर रही हैं
प्यार में धोखा खाई हुई प्रेमिकाएं
अब भी प्रेम कर रही हैं ...

waah

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मैं कौन हूं ? इस सवाल की तलाश में तो बड़े-बड़े भटकते फिरे हैं, फिर चाहे वो बुल्लेशाह हों-“बुल्ला कि जाना मैं कौन..” या गालिब हों- “डुबोया मुझको होने ने, ना होता मैं तो क्या होता..”, सो इसी तलाश-ओ-ताज्जुस में खो गई हूं मैं- “जो मैं हूं तो क्या हूं, जो नहीं हूं तो क्या हूं मैं...” मुझे सचमुच नहीं पता कि मैं क्या हूं ! बड़ी शिद्दत से यह जानने की कोशिश कर रही हूं. कौन जाने, कभी जान भी पाउं या नहीं ! वैसे कभी-कभी लगता है मैं मीर, ग़ालिब और फैज की माशूका हूं तो कभी लगता है कि निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो की सुहागन हूं....हो सकता कि आपको ये लगे कि पागल हूं मैं. अपने होश में नहीं हूं. लेकिन सच कहूं ? मुझे ये पगली शब्द बहुत पसंद है…कुछ कुछ दीवानी सी. वो कहते हैं न- “तुने दीवाना बनाया तो मैं दीवाना बना, अब मुझे होश की दुनिया में तमाशा न बना…”

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